षष्ठी दुर्गा पूजा 2023 (sasthi durga puja 2023): शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ:: षष्ठी पूजा का महत्व, विधि और शुभ मुहूर्तम, षष्ठी तिथि से शुरू होगा दुर्गा पूजा का पर्व.
हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ षष्ठी तिथि से होता है। आज 20 अक्टूबर 2023 को षष्ठी तिथि है, इस दिन से दुर्गा पूजा का पर्व आरंभ होता हे। दुर्गा पूजा का पर्व नौ दिनों तक चलता है और दशमी तिथि को विसर्जन के साथ संपन्न होता है।
हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व है। इन नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। नवरात्रि के छठे दिन षष्ठी पूजा होती है। इस दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। मां कात्यायनी को महिषासुर मर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है।
षष्ठी पूजा का शुभ मुहूर्त:
षष्ठी पूजा का शुभ मुहूर्त 20 अक्टूबर 2023 को सुबह 11 बजकर 24 मिनट से लेकर शाम 7 बजकर 55 मिनट तक है।
षष्ठी दुर्गा पूजा नवरात्रि के छठे दिन मनाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है। यह वह दिन है जब मां दुर्गा अपने बच्चों, कार्तिकेय और गणेश के साथ पृथ्वी पर आती हैं। इस दिन भक्तगण मां दुर्गा का आह्वान करते हैं और उनका स्वागत करते हैं।
षष्ठी दुर्गा पूजा के दिन, भक्तगण सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और नए कपड़े पहनते हैं। वे अपने घरों को फूलों और रंगोली से सजाते हैं। वे मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करते हैं और उनका पूजन करते हैं। पूजा में फल, फूल, मिठाई और नारियल आदि चढ़ाए जाते हैं। भक्तगण मां दुर्गा के मंत्रों का जाप करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
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षष्ठी दुर्गा पूजा के दिन कई तरह के अनुष्ठान किए जाते हैं। इनमें से एक अनुष्ठान है कलश स्थापना। कलश स्थापना में एक मिट्टी के बर्तन में जल भरकर उस पर आम के पत्ते और नारियल रखा जाता है। इस कलश को मां दुर्गा का प्रतिनिधि माना जाता है।
षष्ठी दुर्गा पूजा के दिन भक्तगण उपवास भी रखते हैं। उपवास के दौरान वे केवल फल और फलों का रस ही ग्रहण करते हैं। शाम के समय भक्तगण मां दुर्गा की आरती करते हैं और उनसे प्रार्थना करते हैं।
षष्ठी दुर्गा पूजा एक बहुत ही महत्वपूर्ण और पवित्र त्योहार है। इस दिन भक्तगण मां दुर्गा के आगमन का जश्न मनाते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
षष्ठी दुर्गा पूजा का महत्व
षष्ठी दुर्गा पूजा का महत्व इस प्रकार है:
- यह वह दिन है जब मां दुर्गा अपने बच्चों, कार्तिकेय और गणेश के साथ पृथ्वी पर आती हैं।
- इस दिन भक्तगण मां दुर्गा का आह्वान करते हैं और उनका स्वागत करते हैं।
- षष्ठी दुर्गा पूजा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
- इस दिन भक्तगण मां दुर्गा से शक्ति, साहस और बुद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
षष्ठी दुर्गा पूजा की परंपराएं
षष्ठी दुर्गा पूजा की कुछ प्रमुख परंपराएं इस प्रकार हैं:
- कलश स्थापना: यह षष्ठी दुर्गा पूजा का एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। इसमें एक मिट्टी के बर्तन में जल भरकर उस पर आम के पत्ते और नारियल रखा जाता है। इस कलश को मां दुर्गा का प्रतिनिधि माना जाता है।
- अखंड ज्योति: षष्ठी दुर्गा पूजा के दौरान पूरे नौ दिनों तक एक दीपक जलाया जाता है। इस दीपक को अखंड ज्योति कहा जाता है।
- दुर्गा सप्तशती का पाठ: षष्ठी दुर्गा पूजा के दौरान भक्तगण दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं। दुर्गा सप्तशती मां दुर्गा की महिमा का वर्णन करने वाला एक पवित्र ग्रंथ है।
- भंडारा: षष्ठी दुर्गा पूजा के दौरान भक्तगण भंडारा आयोजित करते हैं। भंडारा में सभी को नि:शुल्क भोजन कराया जाता है।
षष्ठी पूजा की कथा:
पौराणिक कथा के अनुसार, महिषासुर नामक राक्षस ने तीनों लोकों पर अपना आधिपत्य जमा लिया था। देवता उससे त्रस्त होकर मां दुर्गा से प्रार्थना करने लगे। मां दुर्गा ने देवताओं की प्रार्थना सुनकर महिषासुर का वध करने का निश्चय किया। मां दुर्गा ने महिषासुर से भयंकर युद्ध किया और अंत में उसका वध कर दिया।
षष्ठी पूजा की विधि:
षष्ठी पूजा के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें। एक चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर मां कात्यायनी की प्रतिमा स्थापित करें। मां को सिंदूर, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप आदि अर्पित करें। मां कात्यायनी के मंत्रों का जाप करें।
षष्ठी तिथि का महत्व:
षष्ठी तिथि को देवी दुर्गा के बाल रूप माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इसी दिन देवी दुर्गा कैलाश पर्वत से धरती पर आती हैं। इसलिए इस दिन को देवी आगमन का दिन भी कहा जाता है। षष्ठी तिथि पर कलश स्थापना और अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित की जाती है। इसके बाद नौ दिनों तक देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है।
षष्ठी पूजा का महत्व:
षष्ठी पूजा से भक्तों को शक्ति, बुद्धि और विद्या प्राप्त होती है। साथ ही, मनोवांछित फल की प्राप्ति भी होती है। इस दिन मां कात्यायनी की पूजा करने से भक्तों को संतान सुख की प्राप्ति होती है।
दुर्गा पूजा के प्रमुख अनुष्ठान:
- कलश स्थापना: दुर्गा पूजा के पहले दिन कलश स्थापना का अनुष्ठान किया जाता है। कलश में जल, गंगाजल, दूध, घी, शहद, तुलसी आदि डालकर उसे पूजा स्थान पर रखा जाता है। कलश को देवी दुर्गा का प्रतीक माना जाता है।
- अखंड ज्योति प्रज्ज्वलन: कलश स्थापना के बाद अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित की जाती है। अखंड ज्योति को नौ दिनों तक लगातार जलते रहना चाहिए। अखंड ज्योति को देवी दुर्गा की उपस्थिति का प्रतीक माना जाता है।
- देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा: दुर्गा पूजा के नौ दिनों में देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। पहले दिन शैलपुत्री, दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन चंद्रघंटा, चौथे दिन कुष्मांडा, पांचवें दिन स्कंदमाता, छठे दिन कात्यायनी, सातवें दिन कालरात्रि, आठवें दिन महागौरी और नौवें दिन सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।
- महाअष्टमी पूजा: अष्टमी तिथि को महाअष्टमी पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दिन देवी दुर्गा के महाकाली रूप की पूजा की जाती है। महाअष्टमी के दिन बलिदान की प्रथा भी निभाई जाती है।
- नवमी पूजा: नवमी तिथि को दुर्गा पूजा का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। इस दिन देवी दुर्गा के महागौरी रूप की पूजा की जाती है। नवमी के दिन हवन और दुर्गापाठ का आयोजन किया जाता है।
- दशमी तिथि: दशमी तिथि को दुर्गा पूजा का समापन होता है। इस दिन देवी दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है। विसर्जन के साथ ही दुर्गा पूजा का पर्व संपन्न होता है।
दुर्गा पूजा का सांस्कृतिक महत्व:
दुर्गा पूजा पश्चिम बंगाल का प्रमुख त्योहार है। इस दौरान पूरे राज्य में भव्य पंडालों का निर्माण किया जाता है। पंडालों में देवी दुर्गा की प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं। दुर्गा पूजा के दौरान धार्मिक अनुष्ठानों के साथ-साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है। दुर्गा पूजा एक ऐसा पर्व है जो लोगों को एक साथ जोड़ता है और सामाजिक सद्भावना को बढ़ावा देता है।
षष्ठी पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन मां कात्यायनी की पूजा करने से भक्तों को मनचाहा फल प्राप्त होता है।